राजेश कुमार राजवंशी ‘विराट राजवंशी भाषामा’
विराटनगर, असोज १२ गते । विराट राजवंशीमे महिला सब बिहाके वाद जितिया पावन मनावै छै । पहिनकर जितिया पावन लहिरमे करै छै । आरह दुलहा पक्षके जितिया पावनमे दुई दिन अगाडि भार करिके कनियाकते आवै छै । पहिनकर जितिया मय कते लहिरमे करै छै । आरह दुलहा पक्ष पावनके विधिविधानमे लागेवला सबे समान भारमे सजाके आनै छै । तब मय कते पहिनकर जितिया पावन सुरु करै छै । जितिया पावनमे लागेवाला कपड़ा से लाकर नेमु तक अखर समान लागै छै । जितिया पावन विधिविधानसे सुरु करै छै ।
पहिनकर दिन लहि कनिया कनिया खैछेत तकर बिहान के ३ बजे भोरौवा कौवा मैना चिरैसबके खाना खुवाबैछे । खानामे दहि चिउरा सब किसिमके मिठा सब लाडु , पेडा, रसभरी, झिलैबी, पुरी, बुनिया, फलपूुलमे केला, सियौ, नास्पाती, बिलाती, खिरा, नेमु, जकरा जे जुरैछे तब बिहान अ‍ैगन दुवार घर सब निपिके गोसैके सिरपाट धोयके सिन्हुर, तेल काकड नेपुरमे लगावैछे पिठारके चिटठोप दैछे । गोसैसिरामे हनुमान ठाकुरमे भि दैछे । तब साझमे लया जितियामे बैठे लिगना धानके छुमा नेठु बनाबैछे । लया नुङा गरगहना सबकोन लगाबैछे । तब अ‍ैगनामे चौका करिके सब समान चौकामे राखैछे । तब कनिया नेठुमे बैठिके जितिया पाथैछे । राजा जितवानके पुजा ढारै छे । सबकोन चढाके राजा जितवानके कहैछे कि “हे राजा जितवान रन मारिके बन जितिके अ‍ैलह ओहिनङे हमरो घरपरिवार रन मारिके बन जितिके आबे “ कहिके कहैछे । तब कनियाके आपन भ्या तिर धनुष बहिनिके सिकरह के तिर धनुष ल्याके पाँच पाक घुमिके बहिनिके पिठिमे छुवाबैछे । तब बहिन भ्या के पाँच मुठ्ठी चौर केला दैछे । तब ओकर भौज पाँच बेर जिभामे सिकरह छुवाके कहैछे “अरोसनी मानिह परोसनी मानिह गामके पछीम डोम रहिथन ओकरो मानिह “ यी बात कहैछे ।
राजा जीतुवाहनके कथा ः एक देशमे एकटा राजा रहै उ राजाके घरमे बेटा रहे बिहाहमे धान, चौर, चुरा चाहिँ तहिया पहिना उखरी समाठमे मात्रै कुटै रहे अपना नै समरहैत परोसिया गरिब गुरुवा सबके धान, चौर, चुरा कुटे दै । वोहिनङ एक दुखिया महिला रहे ओहो धान, चुरा, चौर कुटेलि लेलकै तब सब दिन पानी खुब परे लाग्ले, तब उ महिला सब दिन झखै , यी पानीमे हमे केरङके धान, चुरा कुटबै केरङके खैबै, खुब मुस्किल हैछे।सबदिन झखै । तब उ महिला कहैछे, हे सुरुज महाराज सभैकते पानी परिह महज हमर कते पानी नैपरिह, कहिके फुकार करै तब सुरुज महाराज ओकर फुकार सुनल्कै ओकर कते पानी नैपोराबै, तब सुरुज महाराजके मनमे कि अ‍ैले देखिए त उ महिला केरङछै से , सुरुज ओकरा भेट करेली एले त संयोग बस उ महिला घरमे नै रहै तब सुरुज महाराज महिलाके घरके डेरिमे पिसाब करि देल्कै हे बस चल गेलै वहा पिसाबमे गेनाहरी सागके गाछ आबैछे वह गेनाहरी साग उ महिला खाना सङे नरिहीके खैछे ।तब कुछ दिनमे गर्भ रहिजैछे । वहाँ वहा गर्भसे बेटा बच्चा हैछे ।
उ बच्चाके बाप थाहा नैरहैछे बच्चाके नाम जितवान रहैछे बडका हैछे स्कुल ज्या लागैछे । जितवान आरह सब बच्चा मिलिके खेल खेलैछे । उ खेलमे बापके नामे ढुकैछे आरह मयके नामे बाहार हैछे । त सब कोइ निक्लैछे महज जितवान नै निक्ले साकैछे । तब उ कान्ले मुन्ले आपन घर मय लगत आबैछे , आरह मयके उ घरी घरी पुछैछे, “मयागे बाबू कते छे, के छिय हमरा देखा त ? “म्या ओकरा कहैल्कै कि बिहान हुए दहै तब तोरा बाप देखा देबौ, “तब बिहान हेले आर सुरुज निकल्ले, तब जितवानके देखाबैछे“ कि हैया ओते तोर सुरुज बाप । बस जितवान कहेछे कि मया आँप हमे बाबू लगत जैबो त म्या कहैछे नहि बेटा नै ज्या साक्भै ओकर धाद सहे नहि साक्भै । तकर वाद जितवान कहेल्कै कोनो भि हुवे, तैयो हम जैबे करबो, घरसे निक्लिके जैछे , जैते जैते ओकरा एकटा आमके गाछ भेटैछे ।
आम एकदम फरल रहेछे तब गाछरा कहैछे तेहे कते जैछह, जितवान कहैछे हमे बापके खोजीमे जैछिए , तब सुरुज कहेछे तोर बाप के छिहन कते छहन , तब जितवान कहेछे हमर बाप सुरुज छिए, हम ओकर बेटा छिए, जे हमर एकटा समाद सुनत, हमर आधा फल लोकस स्वाद मनिके खैछे, आर आधा फल फेकी दैछे । तब फेन ओतेस निक्लिके ज्या लागैछे, तब लिलाबती या कलाबती दोनो बहिन भेटैछे , कहैछे जितवान जि तेहे कते जै छह, जितवान कहेछे, हमे आपन बापके दर्शन करेली जै छि, तब दोनो बहिन पुछैछे, तोहर बाप कते छहन, जितवान कहैछे हमर बाप सुरुज छिय, हमे सुरुज बापके भेटे जै छिये, तब दोनो बहिन कहैछे, हमर एकटा समाद ते आपन बाप लगत लेले जात । हमरा सियाके जे पिढियामे उ पिढिया हमरसके नै छुटैछे , कोन कारन छिए । तब फेन जैते जैते एकटा फुसके घर भेटैछे । घर पुछैछे, कि हे बालक तेहा कते जैछह, जितवान कहैछे हमे सुरुज बापस भेटे जैछिये, तब घर कहैछे , हमर एकटा समाद लेलेजा, जे कहिनो हमरा बनियाहास छारैछे तैयो हमे चोयबे करैछिये, यकर कोन कारण छे । तब ओतेस फेन जितवान निकलैछे । तब जैते जैते एकटा बडका गङा भेटैछे । उ गङाके कातमे एकटा काछु भेटैछे । जितवान गङा कात पुगैछे । ओकरा बहुत चिन्ता लागैछे । केरङ्के गङा पार हेबै काछु पुछैछे, तेहे कते जै छह, गङा देखिके चिन्ता मानै छह । जितवान कहेछे हमे बाप के भेटे जैछिए, तब कछु पुछैछे, “तोर बाप के छिहन, कते छहन ?“ तब जितवान कहैछे हमर बाप सुरुज छिये हमे ओकरहै भेट जैछि । तब काछु कहैछे हमे पार करि देभन एकटा समाद लेलेजा, हमे कथिली पानीमे कहियो नैडुबैछिऐ, तब काछु आपन पिठिमे बोकिके पार करिदैछे ।
तब बालक फेन लागैछे । तब सुरुज लगत पुउगे पुगेमे लागैछे । त ओकरा एकदम धाद लागैछे । तयो उ कोनो किसिमसे जैबे करैछे। तब ओते पुगिलागेके बादमे सुरुज पुछैछे। कि तेह कते अ‍ैलहछह, यतना दुःख कष्ट करिके , तब बालक कहैछे । तेहे हमर बाप छिह हमे तोरा भेटे अ‍ैल छिये । तब सुरुज पुछैछे तोरा के कहिलकहन कि सुरुज तोर बाब छिये । तब जितवान कहैछे, हमर मया कहैलकै, तोर बाप सुरुज छियौ । तब सुरुज, छक जैछे, केरङ्के हमे तोर बाप छिये । जितवान सब बात खोलिके कहिलकै सुरुज त सब बात जान्थै रहै तैयो ओकर मुखस सुनिके खुसी भेलै आर बरदान देलकै कि जो तोर आज दिनसे तोर पुजा सब कोइ करतो । तब स सुरुज उ बालकके मया प्रेम खुब करेलागलै । आर घार घर आबे लिगिन नैदै ।
तब जिद करे लाग्ले कि घरमे मया असकरहैछे हमे घर जैबे । बाबु हो जब हमे आबै रिहै तब एक दुइटा समाद लोकस देल छे , कोन समाद छियौ बोल ? तब जितवान कहैछे ।आमके गाछ कहिल रहै , “आधा फल खैछे आधा फेकी दैछे ।“ यकर कोन कारण छिये । सुरुज कहैछे । आधा फल बनिहा रहैछे आधा फल खटटा पिल्लु बाला रहैछे । यहाँ खातिर आधा खैछे आधा फेकी दैछे । तब फेन लिलाबती कलाबती जे पिढियामे बैठैछे उ पिढिया कहियो नै छुटैछे । तब सुरुज महाज कहैछे, कोइभि गामके अरोसनी परोसनी घुमे आबैछे, तब ककरो भि बैठकि नै दैछे, यहाँ कारणसे ओरङ हैछे । तब फेन घरके समाद कहैल्कै हमरा कतनोह बनिहासे छारैछे तयो । भि हमे चोइबे करै छिये । ओकर कोन कारण छय । तब सुरुज जि कहैछे, यि घरके आदमी स भात खाके घरके झलखोनिके खर हिचिके दात खोधैछे यहास उ चुहैछे । तब फेर गङा कातमे एकटा काछु रहै उ हमरा कहिल्कै कि हमे पानीमे नै डुबै छिये ।यकर कोन कारण छिये । तब सुरुज कहैछे , काछु गङाके चनरहार ढोकि लेलछे । यी जे निकालि दे तै तब यी डुबतै ।
सबटा समादके उत्तर सुरुज बाप ओकरा देल्कै अब उ घर आबैछे । सबसे पहिना गगा भेटैछे । तब काछु पुछैछे । कहिलह हमर समाद । कहिलये तोर समाद तब काछु कहैछे कहनित ।जितबान कहेैछे, पहिना गगा पार करिकेदा तब यी बात सुनैभन । जितवानके काछु पार करिदैछे । तब जितवान कहैछे, कि ते गगा माताके चनरहार कहियो ढोकल छेलह । उ हार जे उग्ल्ली देभ तब डुभ्भ । तब फेर घर कहैछे हमर समाद कहिलह , जितवन कहैछे कहिलये । तोर घरके आदमिस भात खाके झल्खोनिके खर घिचिके दात खोधै छहन । वहा कारणसे घर चुयैचछन ।
जितवान जैते जैते लिलाब्ती कलाबती भेटैछे तब जितवानके पुछैछे हमर समाद पुछलह, तब जितवान कहैछे कि तोर कते अरोसियापरोसिया स घुमे आबै छहन त, ते बैठकि नै दैछ । वहाँ कारन स यरङ है छन । तब येते येते आमके गाछि लगत पुगलै तब गाछ कहैछे, हमर समाद आनल्ह ।जितवान कहैछे तोर कारन यी छहन कि गाछि लगत फुहर गन्दा करेके कारणस आधा फल तोर खराब आधा फल असल रहै छन । यहाँ खातिर आधा फल तोर खैछन आधा फल फेकी दैछहन । तब जितवान घर पुगैछै । राजवंशी महिला सब जितिया पावन मनवे कारण खासमहिला सब आपन पति, बेटा, बेटि स परिवारके लम्मा आयु आर सुख शान्तिके खातिर राजा जितवान के पुजा करैछे । जितिया पावन महिला सब प्रत्येक वर्ष बिहा हेल महिला सब मनाबैछे ।

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